रविवार, 5 अप्रैल 2020

प्रकृति [ दोहा ]


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✍ शब्दकार ©
🌿 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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प्रकृति  पुरुष दो तत्त्व हैं, सर्व सृजन आधार।
विकृत    हो यदि संतुलन,विनशे यह संसार।।

प्रथम  प्रकृति अपनी धरा, धारण का आधार।
है द्वितीय नारी प्रकृति, जाए जगत अपार।।

भू    जल   आगी  शून्य ये,महाभूत    हैं पाँच।
वायु तत्त्व है पाँचवां , सृष्टि सृजन का साँच।।

मानव   दोहन कर रहा, प्रकृति तत्त्व का रोज
बदला   लेगी एक दिन,अरि मानव को खोज।

कुदरत    से अस्तित्व  है,यह मत जाना भूल।
बोए    बीज     बबूल  के,   सदा चुभेंगे   शूल।।

जगती  की माता प्रकृति,   सबकी पालनहार।
अपमानित      माँ को  करे,   कैसे हो   उद्धार।।

बहुल   अंश इस देह का,जल जीवन आधार।
सदुपयोग    जल का करें  ,मान सदा  आभार।।

सुमन   लता पादप सभी, हैं कुदरत के अंग।
गिरि सरिता सागर गहन,के अपने नित रंग।

रवि    शशि तारे और  ग्रह,नभ में मानव हेत।
दिव्य  ज्योति दिखला रहे,पीत अरुण या सेत।

वात,   पित्त,  कफ़ देह में,जीवन के आधार।
बिगड़ेगा   जब     संतुलन,रोग बनें साकार।।

प्रकृति  सहन करती सदा, जब हो सीमा पार।
'शुभम'   अशुभ होता तभी,देती है  वह खार।।

💐शुभमस्तु!

02.04.2020 ◆7.30 अप.

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