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✍ शब्दकार ©
🍑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बातों की अब बात नहीं है।
पहले जैसी बात नहीं है।।
हमने समझा था इंसां हो,
इंसां जैसी बात नहीं है।
आँखों वाले वे अंधे हैं,
आँखों वाली बात नहीं है।
छल - फ़रेब का मिटा अँधेरा,
धोखे वाली बात नहीं है।
मुँह में राम बगल में छुरियाँ,
अब यकीन की बात नहीं है।
जला दूध का छाछ फूँकता,
समझाने की बात नहीं है।
'शुभम' नदी की धार पलटता,
बहने वाली बात नहीं है।
💐 शुभमस्तु !
03.04.2020 ◆5.00अप.
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