◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍ शब्दकार ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
आदमी का आदमी से बात करना बंद है।
दुरदुराती नज़र से आघात करना बंद है।।
ख़ाली सड़क, बाज़ार, गलियाँ हैं सभी,
अपने घर से रौशनी भी निकलना बंद है।
सूनी पड़ी हैं सब पटरीयाँ भी हमारी रेल की,
देख लो नीले गगन में यान उड़ना बंद है ।
जब से चली ये विषहवाएँ अहंवादी चीन से,
बाग में मुस्कान का हर फूल खिलना बंद है।
आदमी से हाथ क्या अपना मिलाए आदमी,
नज़रें उठाए गर्व से नज़रें भी मिलना बंद है।
अजब सन्नाटा यहाँ पसरी हुई वीरानगी,
माँझियों का नदी में कोई नाव चलना बंद है।
इस तरफ है नेकनीयत उस तरफ हैवानगी ,
शुभम क्या जी बाग में फूल खिलना बंद है?
💐 शुभमस्तु !
18.04.2020 ◆ 6.05 अपराह्न।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें