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✍ शब्दकार ©
🪔 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अंबर तक आशा की धरती।
आशा न कभी मेरी मरती।।
आशा में दिव्य उजाला है।
उन्नति का खुलता ताला है।।
जीवन प्रकाशमय है करती।
आशा न कभी मेरी मरती।।
सरिता -प्रवाह कब रुकता है?
क्या अंबर नीचे झुकता है ??
हुंकार आँधियाँ जब भरती।
आशा न कभी मेरी मरती।।
कब सुमन भूलते मुस्काना?
भौरों से मधुरस चुस्वाना??
ताजा सुगंध उड़ती - फिरती।
आशा न कभी मेरी मरती।।
नियमित है भानु उदय होता।
अस्ताचल में जाकर सोता।।
हर किरण विश्व उज्ज्वल करती।
आशा न कभी मेरी मरती।।
शशि शीतलता का दानी है।
वह तनिक नहीं अभिमानी है।
रश्मियाँ चकोरें नित चरती।
आशा न कभी मेरी मरती।।
पर्वत सिर ऊँचा तान खड़े।
सरिताओं के वे पिता बड़े।।
झर झर झर झर रहती झरती।
आशा न कभी मेरी मरती।।
कृत्रिम जीवन जो जीता है।
नित ज़हर बनाता पीता है।।
मुश्किलें नहीं उसकी टरती।
आशा न कभी मेरी मरती।।
जो दूर प्रकृति से रहता है।
दरिया में शव - सा बहता है।।
मानव से प्रकृति नहीं डरती।
आशा न कभी मेरी मरती।।
ठोकर खा अक्ल नहीं आती।
मानव प्रजाति फिर पछताती।
आशा से 'शुभम' नाव तरती।
आशा न कभी मेरी मरती।।
💐 शुभमस्तु !
16.04.2020 ◆9.45 पूर्वाह्न।
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