◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●
✍ शब्दकार ©
🍀 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●
टूट गया है आज भरम।
कभी न होगी खाज नरम।।
बिच्छू साँप न बदलेंगे,
बची नहीं है लाज - शरम।
बदलेंगे वे चेहरे रोज़,
करें बुरे नित काज करम।
भले कटे अपनी ग्रीवा ,
लक्ष्य गिराना गाज चरम।
पत्थर छाती , हाथों में,
बाहर आया आज मरम।
ठंडा करके क्यों खाना,
कहता यही जमात धरम।
'शुभम' बुद्धि की बलिहारी ,
खाती है जो घास गरम।।
💐 शुभमस्तु !
25.04.2020 ◆11.45 पूर्वाह्न।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें