सोमवार, 27 अप्रैल 2020

ग़ज़ल


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✍ शब्दकार ©
🍀 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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टूट   गया  है  आज  भरम।
कभी  न होगी खाज नरम।।

बिच्छू   साँप    न   बदलेंगे,
बची नहीं  है  लाज - शरम।

बदलेंगे     वे   चेहरे    रोज़,
करें  बुरे  नित  काज करम।

भले  कटे   अपनी     ग्रीवा ,
लक्ष्य  गिराना  गाज  चरम।

पत्थर   छाती ,    हाथों  में,
बाहर आया  आज   मरम।

ठंडा  करके    क्यों   खाना,
कहता  यही   जमात    धरम।

'शुभम' बुद्धि   की बलिहारी ,
खाती   है  जो   घास गरम।।

💐 शुभमस्तु !

25.04.2020 ◆11.45 पूर्वाह्न।

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