शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

देह के नव द्वार [ चौपाई ]


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✍ शब्दकार ©
🍀 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कर्ता     के  सब  काम  निराले।
सभी   मनुज  नव द्वारों वाले।।

नौ      दरवाजे    देहधाम  के।
होते   हैं जो  विविध काम के।।

सात  द्वार  मुखड़े  पर   सोहें।
आपस  में  नर - नारी  मोहें।।

कटि   के  नीचे  हैं  दो  द्वारा।
करें  विसर्जित  देह-विकारा।।

दो  आँखों  से दुनिया दिखती।
सारे  जग को सदा निरखती।।

पथ   पर  रखते नज़र हमारे।
मानव  के दो  नयन  सहारे।।

नयन   बीच   नीचे   है नासा।
कहती  साँसों  की परिभाषा।।

दो - दो छिद्र नाक  के  सुंदर।
आता - जाता  श्वास समंदर।।

दायाँ      सूर्य    चंद्रमा  बायाँ।
उष्ण- शीत जो तन में छाया।।

इड़ा  , पिंगला    दोनों  नाड़ी।
मध्य   सुषुम्ना है  कल्याणी।।

नासा  तर आनन  की शोभा।
अधर  कपाट देख मन लोभा

मुख  से  वाणी ,भोजन होता।
पाप-पुण्य  के फल भी बोता।।

दाँत  मध्य   रसना  है  प्यारी।
स्वादकली की जिसमें क्यारी।

वाणी की निधि जीभ हमारी।
सभी स्वाद  की  जिम्मेदारी।।

करते दंत  खाद्य  का चर्वण।
ग्रास   नली   को होता अर्पण।।

कोयल   मेढक की हर बोली।
विधि  ने जीभ हमारी घोली।।

सिर के पार्श्व कान दो प्यारे।
सुनते शब्द जगत के न्यारे।।

मानस     को    संवेदन   देते।
समझ  ज्ञान से  उनको लेते।।

तन- मल के जो करें निकासा।
उनकी   अपनी -अपनी भाषा।

मूलाधार     छिपा   है    नीचे।
कुंडलिनी     को  अंदर  भींचे।।

सबके   एक    द्वार  पर ताला।
मधि कपाल का रहस निराला।

ब्रह्मरंध्र    जो   है    कहलाता।
मोक्ष  क्रिया का मार्ग बताता।।

सतत     साधना  जो करता है।
ब्रह्म-शिखर  दर से तरता है।।

ब्रह्म -द्वार  से प्राण निकलते।
वे मानव फिर जन्म न धरते।।

बिंदु  सिंधु  में जाकर मिलता।
कमल  सरोवर में जो खिलता।

💐 शुभमस्तु !

20.04.2020 ●7.00अप.

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