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✍ शब्दकार ©
🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
वीणा कवि की बज रही , नभ में है गुंजार।
सरिता गिरि सागर मची,धरती पर झंकार।।
धरती पर झंकार, समर्थन में खग गाते।
नदियाँ करें किलोल,मोर वन में मदमाते।।
' शुभम' विष्णुजी संग, विराजीं देवी श्रीणा।
ब्रह्मा सर्जन लीन , बजाती माता वीणा।।
-2-
वाणी कवि उर शृंग से, निसृत गंगा धार।
जन गण मन पावन करे, जीवन का उद्धार।।
जीवन का उद्धार, श्रवण जो कोई करता।
जलते भौतिक ताप , वेदना उर की हरता।।
'शुभम' खिलातीअंक,विमल कविता कल्याणी।
रहता शेष न पंक, दैविकी कवि की वाणी।
-3-
मानव का सौभाग्य है, करे सृजन जो काव्य।
धरा लोक में ही मि ले,पावनता संभाव्य।
पावनता संभाव्य, सत्य शिव सुंदर कहता।
मिथ्या से नित दूर ,कष्ट जो चाहे सहता।।
'शुभम 'असित अज्ञान,नहीं हो सकता दानव।
मानव - जीवन भाग्य,सुभागी है कवि मानव।।
-4-
मानव यदि कोशिश करे,बन ता वैद्य वकील।
कवि यों ही बनता नहीं, ऊँची उड़ती चील।
ऊँची उड़ती चील ,हंस की अपनी सीमा।
कौवे करते शोर , गिद्ध उड़ता है धीमा।।
'शुभम' गीत के मीत, देव बन जाते दानव।
दस रस का आनन्द, उठाते हैं कवि मानव।।
-5-
माता देवी शारदा , दें ऐसा वरदान।
मानव हित रचना करूँ,निर्मल हो ये ज्ञान।
निर्मल हो ये ज्ञान, वेदना हर लें सारी।
उर की बगिया फूल, खिले हों शोभा न्यारी।।
'शुभम' काव्य की धूम,मची हो भगवत ध्याता
सबका हो कल्याण , शारदे देवी माता।।
💐 शुभमस्तु !
27.04.2020 ◆2.45अपराह्न।
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