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✍️ शब्दकार©
🎑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
दोहा, चौपाई लिखें, या कुंडलिया छंद।
नियम नहीं आता अगर,लिखना करदें बंद।
लिखना कर दें बंद, प्रथम नियमों को जानें।
यदि हो तुम अज्ञान,छंद की टाँग न तानें।।
'शुभम'सीख लें छंद, न समझें रबड़ी पोहा।
अपमानित हों मीत,इसलिए जानें दोहा।।
-2-
अपनी हठ पर हैं अड़े,कुछ कवि रचनाकार।
शुद्ध नहीं लिखते सदा,मिटती काव्य-बहार।
मिटती काव्य - बहार,चिह्न भी नहीं लगाते।
चलती जैसे ट्रेन ,रुके बिन तेज भगाते।।
'शुभम' ऐंठ में खूब,बहस की माला जपनी।
समझें तुलसी सूर,अड़े हैं हठ पर अपनी।।
-3-
रचना करना है कला, उचित न फ़ूहड़ लेख।
कोई उनको टोक दे,करें न मीन न मेख।।
करें न मीन न मेख,समीक्षक को धमकाते।
आड़ी तिरछी पाँत,काव्य की वे छिड़काते।।
'शुभम' न मानें बात,शोर मचना ही मचना।
अहंकार के पूत, बिखरती करते रचना।।
-4-
गाड़ी भर कवि हो गए,गली - गली में आज।
बड़े -बड़ेउपनाम हैं,स्वयं बाँध सिर ताज।।
स्वयं बाँध सिर ताज,जीभ की खाज मिटाते।
हँसगुल्ले की तोप, चलाकर हँसें हँसाते।।
'शुभम' मधुरतम सोम, पी रहे दारू ताड़ी।
नहीं सहित काभाव,मिलें कवि भरभर गाड़ी
-5-
बसता उर में अहं जब,कैसा रचनाकार!
कवि ब्रह्मा का रूप है,सर्जन का आधार।।
सर्जन का आधार , काव्य शब्दों से गढ़ता।
देता रूपाकार , सुघर साँचे में मढ़ता।
'शुभम'सजाता अंग,अंग को मन से कसता।
विमल शरद का बिंदु,हृदय में अमृत बसता।
💐 शुभमस्तु !
10.10.2020◆10.00 पूर्वाह्न।
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