मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

साबुन [ बालगीत ]


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✍️ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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घिस - घिस छोटा मैं होता हूँ।

मैल   तुम्हारा   मैं    धोता हूँ।।


तरह - तरह  के  रँग  हैं   मेरे।

महक  ताजगी  भरी बिखेरे।।

कभी न   मैला  मैं   होता  हूँ।

मैल    तुम्हारा   धोता     हूँ।।


सब ही मुझको  साबुन कहते।

सस्ते  - मँहगे भी हम  रहते।।

कभी  नहीं  मैं  तो  सोता हूँ।

मैल  तुम्हारा   मैं  धोता   हूँ।।


मैं विषाणु  को मार  भगाता।

पल में हर  जीवाणु हटाता।।

उनको   झागों  में  खोता हूँ।

मैल  तुम्हारा   मैं  धोता  हूँ।।


नित   सेवा  में  तत्पर  रहता।

खोता निजअस्तित्व न कहता।।

कभी न फ़िर भी मैं रोता  हूँ।

मैल   तुम्हारा   मैं   धोता  हूँ।।


वसा अम्ल में कास्टिक सोडा।

पानी   भी   लगता है थोड़ा।।

तब ही  मैं   निर्मित  होता हूँ।

मैल  तुम्हारा   मैं   धोता  हूँ।।


मृदु  कठोर  दो   रूप हमारे।

सोडा  या   पोटाश   सहारे।।

कैमीकल क्रिया  सँजोता हूँ।

मैल     तुम्हारा   धोता   हूँ।।


💐 शुभमस्तु !


27.10.2020◆10.00पूर्वाह्न।


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