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✍️ शब्दकार©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप' शुभम'
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दीवारों के सँग रह रहकर,
दीवार बनाना जान लिया।
निर्जीव सोच मानव तेरी,
क्यों कदाचार सच मान लिया।
ये ऊँच - नीच की दीवारें,
भू पर ही तुझे गिराती हैं।
मज़हब, धर्मों की चट्टानें,
मानव का मर्म चुराती हैं।।
हिन्दू - मुस्लिम के खंजर से,
कट जाना तूने ठान लिया।
दीवारों के सँग रह रहकर,
दीवार बनाना जान लिया।।
जब वोट पड़ें सब हिन्दू हैं,
वैसे अनुसूचित पिछड़े हैं।
इन सबको मारा भगाना है,
तुम उत्तम उनसे अगड़े हो।।
उनकी धमनी का खून स्याह,
अपना है अरुणिम जान लिया।
दीवारों के सँग रह रहकर,
दीवार बनाना जान लिया।।
जब भीख खून की लेते हो,
पूछा न कभी बाँभन, धोबी।
जब प्राण बचाता शुद्र -रक्त ,
जानते नहीं बुशरा, बॉबी।।
लेने से पहले लोहू को,
क्या इतना तूने छान लिया?
दीवारों के सँग रह रहकर,
दीवार बनाना जान लिया।।
जब भरा पेट होता तेरा,
तब ऊँचनीच दिखता तुझको।
अपने को ऊँचा बतलाता,
नीचा ही दिखलाता सबको।।
खुदगर्ज़ी तेरा धर्म बना,
ऊँचा निज झंडा तान लिया।
दीवारों के सँग रह रहकर,
दीवार बनाना जान लिया।।
बस में न पूछता चालक से,
किस जाति, धर्म का तू भाई?
होटल पर चभर -चभर चरतीं,
सूकर ,श्वानों-सी वह माई।।
मानवतावाद सिखाता है,
तू थोथा ,यह पहचान लिया।
दीवारों के सँग रह रहकर,
दीवार बनाना जान लिया।।
वर्णों में बाँटा मानव को,
तू गोरा वे सब काले हैं।
तू जन्मा और द्वार से ही,
वे अन्य ईश ने पाले हैं।।
सब एक खाक में मिलने हैं,
तूने न कभी यह ध्यान लिया।
दीवारों के सँग रह रहकर,
दीवार बनाना जान लिया।।
माटी के पुतले सँभल 'शुभम',
माटी में सबको मिलना है।
माटी की ढेरी पर तेरी,
दूबों का झुरमुट खिलना है।।
तू समझदार तो इतना है ,
कालौंच गही मुख सान लिया।
दीवारों के सँग रह रहकर,
दीवार बनाना जान लिया।।
💐 शुभमस्तु !
11.10.2020◆8.45 अपराह्न।
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