बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

चार्वाक् की चारु वाक् [ कुण्डलिया ]


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✍️ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                      -1-

सत्ता  ईश्वर  की  नहीं, चल लोकायत   राह।

चारु वाक् कहती यही,बनी रहे सुख  चाह।।

बनी रहे सुख चाह,जिओ सब सुख से जीना।

करो  न  तन से काम, बहाना नहीं  पसीना।।

खाओ 'शुभम' उधार, हिलाना मत रे पत्ता।

ऋण लेकर खा माल, नहीं ईश्वर की सत्ता।।


                       -2-

होते  स्वर्ग न  नर्क ही, और न होती  मुक्ति।

ऋण लेकर सुख से रहो,सुंदर सबसे भुक्ति।।

सुंदर  सबसे भुक्ति, भोग में तन  मन  बीते।

बिना  भोग सब सून,चले जाओगे  रीते।।

'शुभम'मिले तन खाक,जिओ मत रोते रोते।

तन को दो आराम,कहीं परलोक  न  होते।।


                      -3-

लेकर सारा धर्मबल, असुर चले सत राह।

जना  विष्णु ने देह से,माया मोह   अनाह।

मायामोह  अनाह,देव  याचक बन   आए।

हुए  धर्म से हीन, पाप ले जग में    छाए।।

'शुभम' दिगंबर देह,मोहमाया बद   देकर।

किए असुर बदराह, पापधारित मत लेकर।।


                       -4-

केवल  हैं  अनुमान ही, ईश्वर या परलोक।

नहीं आत्मा जन्म ले,करें न मन में  शोक।।

करें न मन में शोक,धरा,जल,तेज,हवा से।

चेतनता उद्भूत, अमर तन नहीं  सुधा  से।।

'शुभम'  देह  के साथ,चेतना के मिटते  तल।

ईश्वर है अनुमान, जिओ सुख से नर केवल।।


                        -5-

होता  जब    ईश्वर नहीं,कैसे मिले  प्रमाण।

खोज-खोजकर व्यर्थ में,क्यों होता म्रियमाण

क्यों होता म्रियमाण, व्यर्थ अनुमान तुम्हारा।

जो  है नित अपरोक्ष, देह ही मात्र    सहारा।।

'शुभम' तत्त्व आकाश,नहीं आत्मा का सोता।

देह   चेतना   रूप,  नहीं  ईश्वर भी    होता।।


💐 शुभमस्तु !


14.10.2020◆12.45 अपराह्न।



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