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✍️ शब्दकार©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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खाना अपने श्रम की रोटी।
मीठी अपने दम की रोटी।।
कामचोर मरते हैं भूखे,
खाना चाहें भ्रम की रोटी।
पूजा होती सदा कर्म की,
भली नहीं है 'हम' की रोटी।
अपनी ताकत को पहचानें,
अंग लगे सश्रम की रोटी।
सीधी राह चलें जीवन में,
भाती हमें न खम की रोटी।
अरबों में जो खेल रहे हैं,
खाते वे भी श्रम की रोटी।
'शुभम' ईश से यही याचना,
देता रहे धरम की रोटी।
💐 शुभमस्तु !
04.10.2020◆11.45पूर्वाह्न।
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