रविवार, 4 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल


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✍️ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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बदल  रहा  है  रोज़  जमाना।

श्रम को समझे बोझ जमाना।


नहीं   चाहता    बहे  पसीना,

करना  चाहे मौज   जमाना।।


ऊपर  की  हो   खूब  कमाई,

करता  ऐसी  खोज  जमाना।


नहीं     पड़ौसी   बढ़ने   पाए,

रखता उससे  सोज़  जमाना।


छाई   है  दिल   में  खुदगर्ज़ी,

भले दिखाता  पोज़  जमाना।


तन गोरा मन  काला- काला,

देता यश  को  भोज जमाना।


चापलूस   है  आज   आदमी,

करता  झूठी   मौज  जमाना।


💐 शुभमस्तु !


04.10.2020◆9.15पूर्वाह्न।

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