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✍️ शब्दकार©
🛤️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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माँ की पूजा करता है।
करनी से क्या डरता है??
छीने अस्मत नारी की,
सूकर बना विचरता है।
जुबाँ शहद - सी है तेरी,
दिल में ज़हर उभरता है।
माँ का टीका माथे पर,
जिस्म श्वान - सा धरता है।
अखबारों में रेप भरा,
इंसाँ नहीं सुधरता है।
तन को रँगने से क्या हो,
मन में रंग न भरता है।
'शुभम' दिखाता है नाटक,
जो मिल जाए चरता है।
💐 शुभमस्तु !
18.10.2020 ◆2.45 अपराह्न।
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