रविवार, 18 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार©

🛤️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

माँ   की    पूजा   करता   है।

करनी  से   क्या  डरता   है??


छीने   अस्मत    नारी     की,

सूकर    बना    विचरता   है।


जुबाँ   शहद - सी    है   तेरी,

दिल में   ज़हर   उभरता  है।


माँ   का    टीका   माथे  पर,

जिस्म   श्वान - सा धरता  है।


अखबारों      में    रेप    भरा,

इंसाँ     नहीं       सुधरता   है।


तन  को   रँगने   से   क्या हो,

मन  में    रंग   न    भरता  है।


'शुभम'  दिखाता   है  नाटक,

जो  मिल  जाए     चरता  है।


💐 शुभमस्तु !


18.10.2020 ◆2.45 अपराह्न।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...