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✍️ शब्दकार©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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'इज्जतघर' में बैठा लाला।
बेच रहा है पेठा लाला।।
आड़ खोजती 'इज्जत'घर की,
ऊँघ रहा है ऐंठा लाला।
बहू जा रही ले कर लोटा,
डंडी मारे जेठा लाला।
उपले, ईंधन 'इज्जतघर' में,
भर देता है बेटा लाला।
'इज्जतघर' का द्वार भेड़कर,
नहा रहा करकेंटा लाला।।
इज्जत बनी सचिव मुखिया की,
आड़ा - तिरछा लेटा लाला।
'शुभम' गेट थर -थर बजता है,
पड़ा- पड़ा बन बैठा लाला।
💐 शुभमस्तु !
04.10.2020◆1.15अपराह्न।
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