रविवार, 18 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल

 

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✍️ शब्दकार ©

🤷🏻‍♀️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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चेहरों  पर   विश्वास  नहीं  है।

 इंसाँ से कुछ आस  नहीं  है।।


रोज़   दिखावे   के  नाटक हैं,

संदेशा  कुछ  खास   नहीं है।


बहू बनी पति -गृह की अम्मा,

कोई  ननदी,   सास  नहीं  है।


झूठे    रंग   फूल    में    देखे ,

जो मनभाए   वास   नहीं  है।


मन पर तम का साया काला,

भावी का  आभास  नहीं  है।


जुबाँ   बोलती    माता ,बहना,

मन में  तनिक उजास नहीं है।


'शुभम'कंस रावण अनगिनती

आता   कोई    रास   नहीं  है।


💐 शुभमस्तु !


18.10.2020◆3.00अपराह्न।


🪂🪁🪂🪁🪂🪁🪂

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