बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

तृप्ति [ मुक्तक ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                      -1-

तृप्ति कहाँ किसको मिलती है,

भुक्ति -चाह किसकी टलती है,

रटन  लगी है  और - औऱ  की,

कथरी  फटी  सदा  सिलती  है।


                       -2-

जितना  भी  रस  को पीता हूँ,

लगता  है   जीवन  जीता   हूँ,

तृप्ति नहीं मिलती है  मन को,

कभी न   पाता   मनचीता  हूँ।

                      -3-

ऊँचा !ऊँचा !!ऊँचा !!! चढ़ता,

चला    गया मैं  ऊपर   बढ़ता,

तृप्ति-बिंदु पर  जब पहुँचा मैं,

पतित हो गया  सपने गढ़ता।।


                     -4-

मरती  देह , न    मरे   वासना,

आती   उसमें   लेश  वास ना,

तृप्ति-बिंदु पर ढलता  मानव ,

'शुभम'समझ मत ये उपासना।।


                      -5-

तृप्ति-बिंदु पर नहीं है रुकना ,

उदासीन  हो   नहीं ठिठकना,

चरैवेति      जीवनाधार     है,

रुक जाने का मतलब चुकना।


💐 शुभमस्तु !


13.10.2020◆2.00 अपराह्न

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