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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
तृप्ति कहाँ किसको मिलती है,
भुक्ति -चाह किसकी टलती है,
रटन लगी है और - औऱ की,
कथरी फटी सदा सिलती है।
-2-
जितना भी रस को पीता हूँ,
लगता है जीवन जीता हूँ,
तृप्ति नहीं मिलती है मन को,
कभी न पाता मनचीता हूँ।
-3-
ऊँचा !ऊँचा !!ऊँचा !!! चढ़ता,
चला गया मैं ऊपर बढ़ता,
तृप्ति-बिंदु पर जब पहुँचा मैं,
पतित हो गया सपने गढ़ता।।
-4-
मरती देह , न मरे वासना,
आती उसमें लेश वास ना,
तृप्ति-बिंदु पर ढलता मानव ,
'शुभम'समझ मत ये उपासना।।
-5-
तृप्ति-बिंदु पर नहीं है रुकना ,
उदासीन हो नहीं ठिठकना,
चरैवेति जीवनाधार है,
रुक जाने का मतलब चुकना।
💐 शुभमस्तु !
13.10.2020◆2.00 अपराह्न
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