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✍️ शब्दकार ©
🚩 डॉ भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बात हँसी की आज की,सुनें सुजन धर कान।
जला रहा पुतला स्वयं,रावण आज महान।।
घर-घर रावण देख लें,गली- गली उन्नीस।
वही आज के राम हैं, दुनियादार खबीस।।
कामवासना लीन जो,वही आज के राम।
तीर पटाखों के चला, छपते फ़ोटो नाम।।
कन्या,बाला,नारि का,नहीं जहाँ सम्मान।
नर समाज रावण वही,कैसे हो पहचान।।
ढोंग रचा नाटक करें,रावण ही नित आज।
विस्फोटक पुतले जला,करते निज पर नाज
नगर गाँव औ'खेत में,गली सड़क व्यभिचार।
वे रावण पुतले जला,बढ़ा रहे भूभार ।।
राम जगा अपना प्रथम,तब रावण पहचान।
पानी पीता छान के, लहू पिए अनछान।।
लगा मुखौटा राम का,देखें रावण रोज।
उत्कोचों से दे रहे,निर्धन जन को भोज।।
माथे पर चंदन लगा,बना हुआ है राम।
परनारी को हेरता, जैसे रति को काम।।
💐 शुभमस्तु !
25.10.2020◆2.00अप.
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