मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

सुगंध [ मुक्तक ]

 

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 शब्दकार ©

🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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रूप  नहीं  आकार   न  तेरा,

सदा  लुभाती   मुझे   घनेरा,

तू   ईश्वर   की   सत्ता  जैसी,

तन-मन करे  सुगंध सवेरा।1।


गेंदा  सुमन    गुलाब, चमेली,

बसी  हुई   है   तू   अलबेली,

देव - भोग   करते    हैं   तेरा,

सद-सुगंध है नित्य नवेली।2।


बिखर  रहा  यश सारे जग में,

नगर, गाँव के हर जन मग में,

हरसिंगार   कली   बेला  की,

भरे सुगंध देह रग - रग में।3।


भँवरा   पीत     पराग   बटोरे,

मधुरस   -  लोभी  बड़े चटोरे,

काला   भँवरा भूँ - भूँ  करता,

मिले सुगंध मुफ़्त गुल गोरे।4।


माटी  में  गुण  एक  समाया,

नर -नारी  को  सदा लुभाया,

वही  गुलाब,  चारु   चंपा में,

शुभ सुगंध वह ही कहलाया।5।


💐 शुभमस्तु !

27.10.2020 ◆12.15अपराह्न।

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