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शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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रूप नहीं आकार न तेरा,
सदा लुभाती मुझे घनेरा,
तू ईश्वर की सत्ता जैसी,
तन-मन करे सुगंध सवेरा।1।
गेंदा सुमन गुलाब, चमेली,
बसी हुई है तू अलबेली,
देव - भोग करते हैं तेरा,
सद-सुगंध है नित्य नवेली।2।
बिखर रहा यश सारे जग में,
नगर, गाँव के हर जन मग में,
हरसिंगार कली बेला की,
भरे सुगंध देह रग - रग में।3।
भँवरा पीत पराग बटोरे,
मधुरस - लोभी बड़े चटोरे,
काला भँवरा भूँ - भूँ करता,
मिले सुगंध मुफ़्त गुल गोरे।4।
माटी में गुण एक समाया,
नर -नारी को सदा लुभाया,
वही गुलाब, चारु चंपा में,
शुभ सुगंध वह ही कहलाया।5।
💐 शुभमस्तु !
27.10.2020 ◆12.15अपराह्न।
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