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✍️ शब्दकार ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बचपन की
आँखों में
भविष्य की चमक,
यौवन में
आज के
वर्तमान की हनक,
वृद्ध देखता है
मुड़ -मुड़कर
पीछे की छुन -छुनक।
यौवन को
कहते हैं अंधा,
उसे तो चाहिए
बस आज का ही
मजबूत कंधा,
न इधर
न उधर ,
कैसे देखेगा ?
गिरा तो गिरा
कैसे सँभलेगा?
उठा तो उठा
फिर क्या कहना!
बूढ़े की पहचान:
अतीत में समाई
रहती है जान,
यदि देख ले वर्तमान
या भविष्य की ओर,
जीवन अमृत हो जाये!
अपनी ही बनाई
रील को
उलट -पलटकर
देखता है,
बीते दिनों की
रंगीनियों में
सुख ढूँढ़ता है,
भविष्य में
निराशा औऱ तम,
बस भ्रम ही भ्रम,
जरा -जरा सा
कर दे,
यही तो जरा है,
कमी है इतनी,
कि वह
अभी नहीं मरा है,
किन्तु उसका
राग -रंग
खट्टा -मीठा अनुभव
ताजा और हरा है,
इसी से तो
वह वृद्ध
जिंदा रहा है !
कुछ भी
नहीं है स्थाई,
न बचपन,
न यौवन,
न बुढापा,
वक्त ने
अपने ही पैमाने से
आदमी को नापा!
फिर क्या खुशफ़हमी
क्या स्यापा?
💐
शुभमस्तु !
23.10.2020◆ 6.15अपराह्न।
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