मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

मानव सिमट रहा है [ गीत ]

  

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✍️ शब्दकार©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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ज्यों-ज्यों मानव सिमट रहा है।

त्यों- त्यों  पूरा  निबट  रहा  है।।


जाति- पाँति  में टंगा हुआ है।

वर्ण- भेद   में रँगा  हुआ  है।।

आपस में  वह  डपट रहा है।

त्यों -त्यों पूरा निबट  रहा है।।


कोई  हिन्दू, सिक्ख  , इसाई।

कोई   नहीं  किसी का भाई।।

मन में काला   कपट बहा है।

त्यों-त्यों पूरा  निबट  रहा है।।


मानव  का  आहार   आदमी।

हिंसा का  आधार   लाजमी।।

खाने को  नर  झपट  रहा है।

त्यों-त्यों  पूरा  निबट रहा है।।


जातिवाद     फैलाते     नेता।

मत फुसला करके वह लेता।।

अस्त्र नोट की चपत  रहा है।

त्यों-त्यों  पूरा निबट रहा है।।


बचा    नहीं  कोई  भी थैला।

राजनीति  का कचरा फ़ैला।।

ज़बरन ही वह लिपट रहा है।

त्यों -त्यों  पूरा निबट रहा है।।


शिक्षा ,धर्म,  कर्म  में गदला।

बदबूदार   नगर या  नगला।।

सन्नाटा  ही   प्रकट  रहा  है।

त्यों -त्यों पूरा निबट रहा है।।


मानव,मानव   से   जलता है।

छुप-छुप कर अपने मलता है।

'शुभम'घटा जो अघट रहा है।

त्यों-त्यों  पूरा  निबट रहा है।।


💐

 शुभमस्तु !


06.10.2020◆5.00अपराह्न।


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