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✍️ शब्दकार©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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ज्यों-ज्यों मानव सिमट रहा है।
त्यों- त्यों पूरा निबट रहा है।।
जाति- पाँति में टंगा हुआ है।
वर्ण- भेद में रँगा हुआ है।।
आपस में वह डपट रहा है।
त्यों -त्यों पूरा निबट रहा है।।
कोई हिन्दू, सिक्ख , इसाई।
कोई नहीं किसी का भाई।।
मन में काला कपट बहा है।
त्यों-त्यों पूरा निबट रहा है।।
मानव का आहार आदमी।
हिंसा का आधार लाजमी।।
खाने को नर झपट रहा है।
त्यों-त्यों पूरा निबट रहा है।।
जातिवाद फैलाते नेता।
मत फुसला करके वह लेता।।
अस्त्र नोट की चपत रहा है।
त्यों-त्यों पूरा निबट रहा है।।
बचा नहीं कोई भी थैला।
राजनीति का कचरा फ़ैला।।
ज़बरन ही वह लिपट रहा है।
त्यों -त्यों पूरा निबट रहा है।।
शिक्षा ,धर्म, कर्म में गदला।
बदबूदार नगर या नगला।।
सन्नाटा ही प्रकट रहा है।
त्यों -त्यों पूरा निबट रहा है।।
मानव,मानव से जलता है।
छुप-छुप कर अपने मलता है।
'शुभम'घटा जो अघट रहा है।
त्यों-त्यों पूरा निबट रहा है।।
💐
शुभमस्तु !
06.10.2020◆5.00अपराह्न।
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