गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

यौवन के दिन चार [ कुण्डलिया ]

 

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✍️ शब्दकार©

💃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                         -1-

बचपन के दो नयन में,ले भविष्य आकार।

वर्तमान    देखें  युवा,  जरा अतीताभार।।

जरा   अतीताभार,  देखता बीते  कल को।

चखता बारंबार, मधुर-खट्टे रस  फल  को।।

'शुभम' सुहाना काल,लगे जब आता पचपन।

जिज्ञासा  में लीन,देखता कल को   बचपन।।


                         -2-

बूढ़े  की    पहचान  है , देखे काल    अतीत।

फूल सभी जब फल बनें, बाकी रहे न तीत।।

बाकी  रहे  न   तीत,  घटीं घटनाएँ    सारी।

राग- रंग के  खेल, शेष  अब तम,  बीमारी।।

'शुभम' न खिलते फूल,कहाँ अब खुशबू ढूँढ़े।

पीछे   रहते  झाँक,  वही कहलाते    बूढ़े।।


                        -3-

यौवन  की आँधी चपल, देखे  केवल आज।

कल का क्या विश्वास है,सजा शीश पर ताज

सजा शीश पर ताज,राग- रंग जी भर भोगो।

कर लो ऐश- विलास,मस्त तन-मन से लोगो।

'शुभं'आज ही आज,देह में सुख की दौ बन।

भर लो पूर्ण उजास,सजाओ अपना यौवन।।


                        -4-

अंधा यौवन आज में,कल की क्या परवाह?

आगे - पीछे देख  ले,उसको वाहो  -  वाह।।

उसको  वाहो -वाह, अनूठा उसका   जीवन।

मिलता उसे विवेक,महकता यौवन का धन।।

'शुभम'न क्षण को देख,सबल हों दोनों कंधा।

धी में जगा प्रकाश, अन्यथा यौवन    अंधा।।


                        -5-

खोई   हुई   अतीत में,  बूढ़े मन   की  देह।

पलट रही निज रील ही, परिजन अपना गेह

परिजन  अपना गेह, देखती बीता  सपना।

यौवन के दिन चार,नहीं कोई अब अपना।।

'शुभम'  सुहानी  साँझ,हो रही नीरस  छोई।

जरा चित्त की देह, विगत सपनों में खोई।।


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* दौ बन= दावाग्नि बनकर।

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💐 शुभमस्तु !


20.10.2020◆10.00पूर्वाह्न।


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