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✍️लेखक ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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यह सच है कि अतीत कभी लौटकर नहीं आता,लेकिन अतीत के बिना वर्तमान भी तो नहीं है। अतीत की पीठ पर कदम रखता हुआ वर्तमान अपने स्थाई पदचिह्न बनाता हुआ आगे बढ़ जाता है।उन पदचिह्नों को कोई याद रखे ,नहीं रखे ;यह व्यक्ति -व्यक्ति पर निर्भर करता है।आज जब मैं अपने अतीत के झरोखों में झाँककर देखता हूँ ,तो खट्टे -मीठे अनुभवों का स्वाद तरोताज़ा हो जाता है।
बात उस समय की है ,जब मैं आगरा के धूलियागंज स्थित अग्रवाल इंटरमीडिएट कालेज में इंटरमीडिएट (जीवविज्ञान) का प्रथम वर्ष छात्र था। विज्ञान ,जीवविज्ञान के साथ-साथ हिंदी और अंग्रेज़ी के विषय भी चयनित करने होते थे। यह बात 1970 की है। हमें अंग्रेज़ी पढ़ाते थे : गुरुवर श्री बी.एल.सिंघल साहब। गुरु जी ने सभी छात्रों को घर पर करके लाने के लिए कुछ गृहकार्य दिया। जिसमें हमें चार लाइन की नोटबुक में अंग्रेज़ी के पढ़ाए हुए सभी पाठों के शब्द , उच्चारण और अर्थ लिखकर लाने को कहा गया था।जिन्हें कुछ ही दिन बाद जाँच कराने को भी कहा गया था।
उस समय हम सभी छात्र गण 'G' के निब वाले होल्डर से अंग्रेज़ी लिखा करते थे। हिंदी लेखन के लिए अलग प्रकार का निब होल्डर में लगाया जाता था।इन होल्डरों से लिखने का उद्देश्य यही होता था, कि हमारा लेख सुंदर हो जाए।लगभग चार -पाँच दिन में काम पूरा करके मैंने अपनी नोट-बुक (कॉपी) गुरु जी को दिखाई। मेरा साफ -स्वच्छ औऱ पूरी तरह से शुद्ध कार्य देखकर वे बहुत ही प्रसन्न हुए और कॉपी पर कार्य के अंत में 'GOOD'का रिमार्क देते हुए मेरी पीठ थपथपाई और शुभ अशीष देते हुए बोले: 'शाबाश बेटे ! इसी प्रकार कार्य करते रहे , तो जीवन में एक दिन बहुत बड़े आदमी बनोगे ,सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी।'
पूज्य गुरुवर के उस आशीष को मैं अभी तक नहीं भूला हूँ। कभी नहीं भुला पाया।आज भी उनके वे वाक्य और उनका वह सौम्य चेहरा नहीं भूलता। पूज्य गुरुवर श्री बिशन लाल सिंघल जी का आशीष मेरे जीवन का वह पाथेय बना जो कभी भी समाप्त नहीं हुआ और आज भी उनकी प्रेरणा और उस शुभ घड़ी में उनके मुखारविंद से निसृत शब्द मेरे जीवन का प्रकाश पुंज बन गए।
मैं यह भी बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ , कि मेरी कार्यप्रणाली अन्य सभी जन से अलग प्रकार की और वैज्ञानिकता से परिपूर्ण होती है। आज भी जीवन के सातवें दशक के सोपानों पर अग्रसर होते हुए मेरी कार्यप्रणाली में कोई परिवर्तन नहीं आया है। यह सब मेरे पूज्य बाबा, दादी, पिताजी , माँ और चाचाजी के आशीष का फल है। मैं आज जो कुछ भी हूँ, उसी वृक्ष का नन्हा बीज हूँ , जिसका अभिसिंचन ,पालन और पोषण मेरे पूज्य पूर्वजों और पूज्य गुरुजन ने किया। मैं आजीवन उनका ऋणी रहूँगा।
💐 शुभमस्तु !
16.10.2020◆ 2.30 अपराह्न।
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