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✍️ शब्दकार©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बाला नारी बालिका,पूज्य बारहों मास।
जहाँ नारि सम्मान हो, होता वहाँ उजास।।
दुराचार जो कर रहे, बालाओं के साथ।
सुअर श्वान नर रूप में,उन्हें न जोड़ें हाथ।।
नारी से ही सृष्टि है, नारी कला स्वरूप।
दुराचार में लीन जो,उन्हें जगत तम कूप।।
कन्या के नव भ्रूण को,हनते नागिन नाग।
यौनि न मानव की मिले, फूटें उनके भाग।।
देवी माँ कहते जिसे, उससे काले कर्म?
पशु से भी वे हीन हैं,मृत है उनका धर्म।।
रमा,जया,माँ शारदा, माता के बहुरूप।
दानव इसको जानकर,गिरते हैं भव कूप।।
यह भी सच है जान लें,नारी आरी रूप।
वही भ्रूण हत्या करे, गिरती है तम कूप।।
नाले, कूड़ा ढेर पर,भ्रूण फेंकती नारि।
नारी ही अरि नारि की,निज को पहले तारि।।
सास सतावे सुत-वधू,समझे सुता न नेक।
उनसे उत्तम वे सभी,कूकर, सूकर, भेक।।
निम्न यौनि में जीव वे,खाते निज संतान ।
कुछ मानव ऐसे यहाँ, रहते इसी जहान।।
बल से नारी जाति का,करता मानव ध्वंश।
मानवता उसकी मरी, रावण हो या कंस।।
💐 शुभमस्तु !
11.10.2020◆5.00अपराह्न।
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