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✍️ शब्दकार©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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सबने
देखे हैं
गाँवों में बने
'इज्जतघर' कितने
मजबूत।
सजी
हुई है
दुकान 'इज्जतघर' में
किसान बना
लाला।
उपले
लकड़ी ईंधन
बढ़ा रहे शोभा
'इज्जतघर' की
आज।
खरीदें
आज कुरकुरे,
गुड़, दाल, सब्जी,
'इज्जतघर' बना
दुकान।
'इज्जत'
जा रही
आज भी बाहर
छोड़कर अपना
'इज्जतघर'।
ओट
मूँज की
ढूँढ़ती जा रही
लेकर लोटा
हाथ।
मिली
किसी को
आड़ मेंड़ की
बैठ गई
निश्चिंत।
आया
कोई राहगीर
उठ खड़ी हुई
लोक लाज
है।
पीलिया
ईंटें चिनी
बघार सीमेंट का
शेष सब
बालू।
गठबंधन
मुखिया सचिव
करते हैं जब
बनते हैं
'इज्जतघर'।
खाएँ
वे मलाई
दिखाते हैं भामाशाही,
बालू से
चिनाई।
खटिया
नहीं करती
खड़ी वे अब
नहाने को
'इज्जतघर'।
है
बहुत आराम
बना जब से
अपना 'इज्जतघर'
सुघर।
नहीं
भीगते अब
उपले, ईंधन,लकड़ी,
'इज्जतघर' जो
है।
आदत
पुरानी है,
जाने की खेत,
छूटेगी कैसे
अपनी।
खाई
है कसम
हम नहीं सुधरेंगे
बना लो
'इज्जतघर'।
दूकान
ईंधन भंडार
स्नानागार भी है
किन्तु नहीं
'इज्जतघर'।
है
बहुत होशियार
आदमी आगे - आगे
पीछे उसके
सरकार।
था
उद्देश्य एक
बहुउद्देशीय बनाया उसने
अपना 'इज्जतघर'
अनौखा।
वे
डाल-डाल
ये पात - पात
क्या करेगी
सरकार?
दिमाग
रखते हैं
हम गाँव वाले
देखो अब
'इज्जतघर'।
💐 शुभमस्तु!
05.10.2020 ◆11.30 पूर्वाह्न।
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