सोमवार, 5 अक्तूबर 2020

शरद -आगमन [ दोहा ]

 

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✍️शब्दकार©

🏞️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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मूँज,काँस की बाल ये,होने लगी सफ़ेद।

ऋतु वर्षा बूढ़ी हुई,शरदागम का    वेद।।


रातें शीतल चाँदनी,खिली अंक ले  सोम।

निर्मल बाँहों में गहे,धरती को सित व्योम।।


आश्विन पूनम चाँदनी, नखत अश्विनी आज।

अश्वाननवत सोहता, अम्बर में शुभ  साज।।


हिरन -देह काली पड़ी,तप आश्विन की धूप।

भूरापन उज्ज्वल नहीं,बदला तन-मन रूप।।


ओस-बिंदु झरने लगे,जैसे नयन  प्रकाश।

नहा रही है चाँदनी ,पिया मिलन की आश।।


विदा हुई पावस सजल,सलज शरद संगीत।

टेसू - झाँझी  गा रहे,दर-दर जाके   गीत।।


आया कार्तिक मास जो,दीपों का त्यौहार।

दीवाली की ज्योति का, मनभाया व्यौहार।।


फूल- तरैया खेलतीं, घर - घर बाला  नेक।

मिलजुल गातीं गीत वे,सस्वर 'शुभं' विवेक।


 फ़सल बाजरे की खड़ी,पकी अन्न की बाल।

प्रकृति रूप बदला सभी,बजती है नवताल।


श्वेत   पुष्प   खिलने लगे,  महका हरसिंगार।

शिवलिंग पर होने लगा,स्वतः सुमन का प्यार


शरद  सुहानी  भा गई,मधुर मनोहर   भोर।

'शुभं'मंजु प्राची दिशा,देख तुरत उस ओर।



💐 शुभमस्तु !


05.10.2020◆2.00 अपराह्न।


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