शनिवार, 3 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल

 

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✍️ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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चलते   रहना  ही  अच्छा  है।

पल-पल बढ़ना  ही अच्छा है।।


रुका  हुआ   पानी  है सड़ता,

बहते  रहना    ही  अच्छा  है।


शजर धूप  सहते   हैं कितनी,

उनका  लगना  ही  अच्छा  है।


नदिया    पार    उतरने   को,

नाविक बनना   ही अच्छा है।


अपनी किस्मत आप बनाओ,

ग़म से  लड़ना  ही अच्छा है।


दोष   दूसरों   को  क्या  देना ,

श्रम भी करना ही  अच्छा  है।


'शुभम'हवा के साथ न बहना,

पवन का बहना  ही अच्छा है ।


💐 शुभमस्तु !


03.10.2020◆4.45अपराह्न।

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