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✍️ शब्दकार©
🛶 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
पर्वत -पिता - गेह से चलती,
तेजी से नीचे वह ढलती,
प्रिय सागर से मिलन -आतुरा,
सरिता कभी न मानव छलती।
-2-
न दिया न दिया उसको कहते,
सिंचन करती हर्षित रहते,
जीवन की धारा है सरिता,
जीव, जंतु,पादप सब लहते।
-3-
गंगा को कहते सुरसरिता,
कलकल बहती अमृत भरिता,
जन जीवन का पालन करती,
पाप -शाप की मोचक हरिता।
-4-
पशु- पक्षी सब प्यास बुझाते,
मानव अपना जीवन पाते,
दे जल निधि को मेघ बरसते,
'शुभम' खेत सब सींचे जाते।
-5-
भारत माँ की धमनी सरिता,
कण-कण में अमृत की भरिता,
बिना रक्त क्या तन मानव का,
धरती पर है वैसे सरिता।
-6-
हर सरिता का प्रीतम सागर,
मंथर - मंथर चाल उजागर,
गुन - गुन गाती गीत मनोहर,
समा रहा निज में नटनागर।।
-7-
लहरों की बाँहों को खोले,
सजनी सरिता से बिन बोले,
आलिंगन में लेता सागर,
लहरों में लेती हिचकोले।
💐 शुभमस्तु !
06.10.2020◆12.30अपराह्न।
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