मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

सरिता [ मुक्तक ]

  

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✍️ शब्दकार©

🛶 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                  -1-

पर्वत -पिता - गेह   से चलती,

तेजी  से  नीचे   वह   ढलती,

प्रिय सागर से मिलन -आतुरा,

सरिता कभी न मानव छलती।


                   -2-

न दिया न दिया उसको कहते,

सिंचन  करती    हर्षित  रहते,

जीवन   की   धारा है  सरिता,

जीव, जंतु,पादप  सब लहते।


                   -3-

गंगा   को  कहते   सुरसरिता,

कलकल बहती अमृत भरिता,

जन जीवन का पालन करती,

पाप -शाप की मोचक हरिता।


                   -4-

पशु- पक्षी सब प्यास  बुझाते,

मानव अपना    जीवन   पाते,

दे जल निधि को  मेघ बरसते,

'शुभम' खेत  सब सींचे जाते।


                     -5-

भारत माँ की धमनी सरिता,

कण-कण में अमृत की भरिता,

बिना रक्त क्या तन मानव का,

धरती   पर   है   वैसे  सरिता।


                     -6-

हर सरिता  का  प्रीतम सागर,

मंथर - मंथर   चाल   उजागर,           

गुन - गुन  गाती गीत  मनोहर,

समा रहा   निज  में नटनागर।।    


                      -7-

लहरों   की   बाँहों  को खोले,

सजनी   सरिता से बिन बोले,

आलिंगन   में   लेता  सागर,

लहरों   में   लेती   हिचकोले।


💐 शुभमस्तु !


06.10.2020◆12.30अपराह्न।

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