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✍️ शब्दकार ©
🌝 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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लगा टकटकी ताकता, पंछी चारु चकोर।
नभ मेंस्वर्णिम थाल सा, चमका चाँदअँजोर।
दुग्ध सनी उज्ज्वल प्रभा,फैली चारों ओर।
अंबर में राकेश है,भू पर विहग चकोर।।
मन में सच्चा प्रेम है,दूरी का क्या मोल।
लेना कभी न जानता, देता है अनतोल।।
विरह कसौटी प्रेम की,खग चकोर से जान।
सदा प्रतीक्षारत रहे, यही प्रेम की शान।।
जब चकोर विष को लखे,होते नयन गुलाल।
प्राण त्यागता शीघ्र ही,आ जाता खग काल।।
चंदा चारु चकोर का,नेह जगत विख्यात।
कवि की कविताकलित है,मूक नेह की बात
पूर्ण आश्विनी चंद्रमा,मुस्काता नभ बीच।
खग चकोर की टकटकी,रही नेहरस सीच।।
सीख दे रहा प्रेम की,सच्चा विहग चकोर।
'ईलू ईलू' झूठ है, मौन नेह की डोर।।
उतर नयन से जा रहा,मन के निलय सनेह।
वाणी होती मौन ये,बनता उर में गेह।।
शिक्षक मानव प्रेम का,चंदा चतुर चकोर।
एक न मुख से बोलता,फिरभी भावविभोर
'करता तुमसे प्रेम में ', झूठा तेरा प्रेम।
कहता मुख से बोलकर,नहीं कुशल या क्षेम।
💐 शुभमस्तु !
31.10.2020◆5.30अपराह्न।
🌝🐤🌝🐤🌝🐤🌝🐤
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