शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

लो फिर बौराए आम [ अतुकान्तिका ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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लो फिर बौराए हैं आम!

खेत ,बागों में हर गाँव

पल्लवों से छतनार,

झुके पड़ते हैं भर मद भार,

प्रकृति का अनुपम है श्रृंगार,

सुनें कानों से गुंजार,

भ्रमर दल की मस्त गुहार।


बाग खेतों में है मधु मास,

खिले हैं पुष्प सानुप्रास,

चाँदनी का भव्य उजास,

कर रही ज्यों  पिय सँग अभिसार।

लुटाती प्यार ।


  ठूँठ पीपल के हरियाये,

 लाल अधरों में मुस्काए,

 नहीं है अब भू पर पतझार,

पीत पुष्पों का संसार,

उधर देखो कचनार,

दिखाती नव वासंती बहार,

मदिर मस्ती भरा खुमार।


चना ,गेहूँ और पकते धान,

देख प्रमुदित हैं सभी किसान,

नाचती सरसों चदरिया ओढ़,

झूमती अरहर रह- रह प्रौढ़,

हर ओर हरीतिमा का साज,

धरा पर आया है ऋतुराज,

न किसी की जीत 

न कोई हार,

प्रकृति का है अद्भुत उपहार।


तितलियाँ आती जातीं 

रंग -बिरंग,

नहीं करतीं वे किसी को तंग,

पी ली है मानो कोई भंग,

 न हो सुनकर यह दंग,

प्रकृति के सभी विलक्षण रंग,

शरद,हेमंत ,वसंत,

छहों ऋतुओं का सुंदर तंत्र,

गूँजता कोकिल का मंत्र,

खुल गए हैं विकास के द्वार,

मत होना 'शुभम' निराश,

नहीं कहना तुम शब्द काश!

यही है जगत जीव व्यवहार,

कभी प्रताड़ना कभी दुलार!


 देख लो फिर बौराए आम,

महकते निशि दिन वे अविराम ,

चलो त्यागें प्रमाद 

कर लें हो सक्रिय कुछ काम,

नहीं केवल आराम,

न केवल चमकाएं चाम,

मधुऋतु की तरह 

खिलाएं सुमन ,

महाकाएं घर ,खेत ,वन ,उपवन,

परोपकार से ही

चलता  है  संसार ,

यही है  'शुभम' 

मधुऋतु का पावन  सार।


🪴 शुभमस्तु !


१८.०२.२०२१◆८.१५पतनम मार्त्तण्डस्य।

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