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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
न दिया कहा देती रहीं,
मँझधार में खेती रहीं,
जीवन की तरणी बेटियाँ,
नदिया सदृश बहती रहीं।
-2-
देती है फिर भी है न दिया,
प्यास बुझाती जल से बढ़िया,
मौन रात - दिन बहती रहती,
कलरव करती बढ़ती नदिया।
-3-
चाह नदी - सी उर में होती,
नियति नहीं मानव की सोती,
बिना शिकायत बहती रहती,
नदी नहीं भर आँसू रोती।
-4-
नदियों में बहता है जीवन,
देती भारत को संजीवन,
लेती नहीं मात्र देती हैं,
सिंचित करती धरती उपवन।
-5-
नदी हमारी प्रेरक माता,
जो गुण गाए भाग्य बनाता,
सुंदर मौन धारकर बहती,
बीहड़ में भी कण उग आता।
🪴 शुभमस्तु !
०२.०२.२०२१◆५.१५पतनम मार्त्तण्डस्य।
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