बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

नदी [ मुक्तक ]

 

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 ✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                     -1-

न   दिया   कहा   देती   रहीं,

मँझधार     में     खेती   रहीं,

जीवन  की  तरणी    बेटियाँ,

नदिया  सदृश   बहती   रहीं।


                      -2-

देती है    फिर  भी है न दिया,

प्यास बुझाती जल से बढ़िया,

मौन रात - दिन  बहती रहती,

कलरव करती बढ़ती नदिया।


                     -3-

चाह नदी -  सी  उर  में होती,

नियति नहीं मानव की सोती,

बिना शिकायत बहती रहती,

नदी नहीं   भर  आँसू   रोती।


                      -4-

नदियों   में  बहता  है जीवन,

देती  भारत   को    संजीवन,

लेती     नहीं    मात्र  देती हैं,

सिंचित करती धरती उपवन।


                      -5-

नदी    हमारी    प्रेरक  माता,

जो गुण   गाए  भाग्य बनाता,

सुंदर  मौन   धारकर   बहती,

बीहड़ में भी कण उग आता।


🪴 शुभमस्तु !


०२.०२.२०२१◆५.१५पतनम मार्त्तण्डस्य।

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