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✍️ शब्दकार©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कूकर भी इस देश का,दुश्मन से उत्कृष्ट।
वफ़ादार हो भोंकता,अरि है दुर्जन दुष्ट।।
अन्न खा रहे देश का,करें न लेश हलाल।
गाते गीत विदेश के, करते सदा बबाल।।
जीना भी इस देश में,मरना भी इस देश।
मरी वफ़ादारी सभी ,ठगें बदल कर वेश।।
सहनशीलता देश की ,जग में एक मिसाल।
विषधर को भी पालती, फैलाते जो जाल।।
निज सीमा को लाँघकर,करता जो व्यवधान
उठो पार्थ रणबांकुरो! साधो तीर कमान।।
बुरी नज़र से देश पर ,डाली जिसने आँख।
आँख फोड़ दें तीर से,काट डाल दें पाँख।।
आस्तीन के साँप का,फन कुचलो रणधीर।
पत्थर से या ईंट से, कहलाओगे वीर।।
कूकर बिल्ली देश के,विश्वसनीय महान।
सर्प दोमुँहे डस रहे,हैं सब विष की खान।।
माता सबको पालती,अपनी हर संतान।
चाहे कूदे शीश पर, मात लुटाती जान।।
जिसने माँगा गोद को,मिली उसे भी गोद।
गोद चढ़ा लोहू पिए, मन को मिले न मोद।।
ग्रामवासिनी भारती, माँ का पाएँ नेह।
'शुभम' सदा सम्मान हो,भारत मेरा गेह।।
🪴 शुभमस्तु !
०६.०२.२०२१◆१.१५ पतनम मार्त्तण्डस्य।
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