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✍️ शब्दकार©
🧑✈️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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माता - पिता हमारे पौधे।
जन्माए हम बालक औंधे।।
अभी कली कल फूल बनेंगे।
कभी नहीं बन शूल तनेंगे।।
महकेंगे भारत की बगिया।
जननी जन्मभूमि हो सुखिया।
भूलेंगे उपकार न इनका।
जोड़ बनाएँगे घर तिनका।।
करनी है हमको ही रचना।
हमसे ही ये धरती सिंचना ।।
इसका अन्न, दूध, फल खाएँ।
अपना हर कर्तव्य निभाएँ।।
'शुभम' कृतज्ञ सदा ही रहना।
नित दरिया-सा हमको बहना।।
🪴 शुभमस्तु!
१४.०२.२०२१◆५.००पतनम मार्त्तण्डस्य।
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