रविवार, 14 फ़रवरी 2021

प्रकृति का वरदान :ओट [ दोहा ]


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✍️ शब्दकार © 

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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प्रेम प्रणय में ओट का,अपना गूढ़ महत्त्व ।

लज्जा  घूँघट खोलती,होता गाढ़ घनत्त्व।।


जीवन में आती कभी, जब सुहाग की रात।

ओट बना मज़बूत- सी,करते दंपति बात।।


बिना ओट संस्कार का,होता सदा विनाश।

नर-नारी पशु तो नहीं,बनें हास का पाश।।


कर्म  बुरे  अच्छे सभी, होते लेकर   ओट।

भय,लज्जा या भेद की,लगे न कोई  चोट।।


बीजारोपण,    अंकुरण,   नारी  गर्भाधान ।

ओट सभी को चाहिए, प्रकृति का वरदान।।


ब्रह्म-जीव के मध्य में,माया की  घन ओट।

आभासित होती सदा,बनकर धन की पोट।।


जादूगर है   ब्रह्म सत, माया सदा   अदृष्ट।

ओट बनी ठगती रहे,करती नित आकृष्ट।।


शैशव भी है ओट ही,जिसकी आड़ किशोर।

यौवन पक्व जरा वहीं,भरती गुप्त   हिलोर।।


बूथों पर जो हो रहा,आज गुप्त मतदान।

ओट बनी  है  वोट की,बोरी ही  वरदान।।


चोरी,ठगी, डकैतियाँ,  लेते तम  की ओट।

परनारी  से जा  मिलें, देते बद नर    चोट।।


तम  की  ओटों  में  बड़े,होते हैं  बहु  काम।

ओट काम को चाहिए,न हो 'शुभम'बदनाम।


१२.०२.२०२१◆६.३० पतनम मार्तण्डस्य।

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