रविवार, 14 फ़रवरी 2021

पूँछ [बाल कविता ]

 

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✍️ शब्दकार©

🦜 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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तनिक  नहीं  मेरी  कुछ पूछ।

फिर भी कहते मुझको  पूँछ।।


लटकी  हिलती - डुलती   हूँ।

फिर  भी   नहीं   बदलती हूँ।।


दुमधारी    पशु      कहलाता।

कद   मेरा   तब   घट जाता।।


कभी  बैठ   मुझ   पर जाता।

कभी   हवा   में   लटकाता।।


भाव   दिखाती    मैं   अपना।

टाँगों  में जब    हो    घुसना।।


मुझको   कभी   हिलाता   है।

चाटुकार    बन     जाता  है।।


पशु   की    मैं   परिभाषा  हूँ।

हरदम   उसकी    आशा  हूँ।।


फिर  भी   मेरी    पूछ    नहीं।

'शुभम' न करती कूच  कहीं।।


🪴 शुभमस्तु !


१४.०२.२०२१◆४.३०पतनम मार्त्तण्डस्य।


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