मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

ग़ज़ल

 

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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धीरे  - धीरे   दीमक  जड़ को काट रही  है।

हुआ    जा रहा पेड़ खोखला बात सही हे ।। 


मार   रहा  है   जबरा  रोना  सख्त  मना  है,

खुला   बड़ा  बाजार न छोटी   हाट रही   है।


जिम्मेदारी    छोड़   देश को बेच  रहे    हैं,

जो वे  कहें   विधान  वही हर बात  सही  है।


चले   गए    अंग्रेज  गुलामी अपनों  की  है,

दिन  को  कहते  रात कहें सब रात  यही  है।


खंड - खंड  है देश जाति, वर्णों  में   बाँटा,

मतदाता  मति  मूढ़ वोट- सौगात  गही  है।


खोले  जो  भी जुबाँ  उसे प्राणों के  लाले,

अपनी  ठोंके  पीठ सत्य ये बात कही  है।


'शुभम'सँभल कर बोल सुन रही हैं दीवारें,

पग -पग पर संत्रास विषैली वात  बही है।


🪴 शुभमस्तु !


२३.०२.२०२१◆३.००पतनम मार्तण्डस्य।

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