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✍️ शब्दकार©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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जब जीवन में हो खुशहाली गीत सुहाता है।
कोलाहल हो रहा देश में हमें न भाता है।।
कहीं आपदाएँ हैं कुदरत की,
कहीं आदमी की फ़ितरत की,
कहीं किसान पड़ा सड़कों पर कष्ट उठाता है,
जब जीवन में हो ख़ुशहाली गीत सुहाता है।
लुटी खेत, सड़कों पर नारी,
मानवता पर पड़ती भारी,
मंचों पर चढ़कर ये पौरुष माल चढ़ाता है,
जब जीवन में हो ख़ुशहाली गीत सुहाता है।
कहता देवी बहन हमारी,
दुर्गा माता की अवतारी,
परदे के पीछे ले जाकर पाप कमाता है,
जब जीवन में हो ख़ुशहाली गीत सुहाता है।
नेता कहते दूध धुले हम,
हंसों से हम नहीं कभी कम,
राजनीति में सान देश को नाश कराता है,
जब जीवन में हो ख़ुशहाली गीत सुहाता है।
सौ में नब्बे दूषित नेता,
परदे में छिप अंडे सेता,
अंधा भक्त भेड़ है सारा भीड़ बढ़ाता है,
जब जीवन में हो ख़ुशहाली गीत सुहाता है।
अंधभक्त ने पट्टी बाँधी,
मनमानी की चलती आँधी,
मध्यम वर्ग चुसा है सारा मरता जाता है,
जब जीवन में हो ख़ुशहाली गीत सुहाता है।
होता ग़लत समर्थन फिर भी,
जातिवाद की गर्दिश भर दी,
हिंदू ही हिंदू का दुश्मन लूट मचाता है,
जब जीवन में हो ख़ुशहाली गीत सुहाता है।
🪴 शुभमस्तु !
१०.०२.२०२१◆४.००पतनम मार्तण्डस्य।
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