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✍️ शब्दकार ©
📙 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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होने लगी है
ज्ञान की महालूट,
कहता नहीं मैं आपसे
तृण मात्र भी कुछ झूठ!
बिना चाहे
लुटा रहे हैं ,
ज्ञान-यज्ञ में
हाथ बँटा रहे हैं,
लूटने की बड़ी है छूट,
थोड़ी - सी भी न करना
लूटने में चूक,
रहनी ही चाहिए
ज्ञानार्जन की भूख!
सुबह होते ही
होने लगी है ज्ञान- वर्षा!
देखकर अपना
हृदय, तन बहुत हर्षा ,
हम भींगने लगे हैं,
व्हाट्सएप -गुरुओं पर
रीझने लगे हैं,
भले ही वे हैं
उस ज्ञान में जीरो,
पर व्हाट्सऐप के बड़े हीरो!
वात्स्यायन,ओशो ,कीरो,
सही मायने में हैं
वे सब गुरू-घंटाल ,
हवाओं में ठोकते
नित्य बेमिसाल ताल!
फैला जो हुआ है
अंतर्जाल विशाल!
कृपा गूगल बाबा की,
फिर क्या गंगा
क्या आकाश गंगा ,
तीन लोक से न्यारी काशी!
समझ लें देश के वासी,
अनसुने अनचीन्हे
ज्ञान का सागर,
गागर में भर
कर दिया उजागर,
ग्राम के वासी ,
अथवा नगर के
उच्छवासी !
कितना बड़ा परमार्थ!
अपना नहीं है तनिक स्वार्थ!
इधर से बरसा
उधर लुटा दिया,
उनका क्या है दोष?
नहीं करना उन पर
कभी तनिक रोष,
ज्ञान है पर
सब म्यान के अंदर!
जैसे जादूगर के पिटारे में
इंद्रजाल का कबूतर!
कला ,साहित्य ,विज्ञान,
ज्योतिष ,इतिहास ,भूगोल,
अर्थ ,समाज, राजनीति,
कामसूत्र, धर्म,
अच्छे बुरे सब कर्म,
आँखों देखा हाल,
ऑडियो ,वीडियो, चित्र
सब कुछ ही जान लो मित्र
ज्ञान की लूट हो रही है,
बिना पढ़े ,बिना उपाधि,
ज्ञान की आँधी !
पर न कोई बना विवेकानंद
नहीं बना गांधी,
बस कंस ,रावण
या विभीषण,शूर्पनखाएँ,
देश दुनिया की हालत
किसको बताएँ?
कोई किसी से
कम ज्ञानी नहीं है,
कोई भी किसी का
सानी नहीं है!
'शुभम' सुन लो चुपचाप
मेरी ये बात
किसी को बतानी नहीं है।
🪴 शुभमस्तु !
०४.०२.२०२१◆८.२० पतनम मार्तण्डस्य।
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