बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

वेला नवल वसंत की [ कुण्डलिया ]


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✍️ शब्दकार©

🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                   -1-

सरसों  फूली  खेत  में, आया है   ऋतुराज।

भौंरे  गुनगुन कर रहे,पीत सुमन का साज।।

पीत  सुमन  का साज,आम्र पादप   बौराए।

मादकता -  संचार,प्रकृति ने पुष्प खिलाए।।

'शुभम' न माने  काम,हार, बीते  दिन बरसों।

झूम  नाचती  खूब, खेत  में फूली   सरसों।।


                     -2-

 बगिया में पिक छेड़ती, कुहू-कुहू का गान।

तन में  भरे उछाह की, रंग - बिरंगी  तान।।

रंग - बिरंगी  तान, महकते फूल    हजारों।

निर्मल नीलाकाश, गमकती दिशियाँ चारों।।

'शुभं'न दिखे अनंग,लगाता तन-मनअगिया।

वन में खिले पलाश, गूँजती मधुरव बगिया।।


                      -3-

वेला नवल वसंत की,किसलय  फूटे  लाल।

पीपल,बरगद,नीम की,छाया सुखद जमाल।

छाया  सुखद जमाल,फूलते सरसों, गेंदा।

टेसू   करे  कमाल,  दीखता  सरि  का पेंदा।।

'शुभम'देख लें नाच,नहीं होगा व्यय धेला।

कलरव करती धार,नदी की निर्मल वेला ।।


                    -4-

धरती दुल्हन- सी सजी,ओढ़ चदरिया पीत।

हरा घाघरा  धारती, गाती- सी मधु    गीत।।

गाती - सी  मधु गीत, पधारे हैं ऋतु  -राजा।

कोयल भरती हूक, कूकती,बजता  बाजा।।

'शुभम'चहकते कीर,प्रकृति में यौवन भरती।

नवल प्राण- संचार,कर रही अपनी  धरती।।


                        -5-

धीरे-धीरे जा  रहा ,शीत देख ऋतु - कांत।

अगवानी करने लगे, पादप, कीर, सुशांत।

पादप कीर सुशांत, बिछे भूतल  पर  पत्ते।

उड़ा ले  गई  वायु, सजे मधुमक्खी -  छत्ते।। 

'शुभम'सुमन-श्रृंगार,खेत,वन,बाग,सु-तीरे।

जगी  काम  की  आग, देह  में धीरे - धीरे।।


🪴 शभमस्तु !


१६.०२.२०२१◆७.३० पतनम मार्तण्डस्य।

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