रविवार, 28 फ़रवरी 2021

ग़ज़ल 🍉🍉


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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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तरबूजे   पर     तरबूजा     है।

खरबूजे   पर  खरबूजा    है।।


चरता   घास   यहीं   घूरे  पर,

श्वान  नहीं  कोई  दूजा     है।


अमुआ  की  डाली  पर बैठा,

नर  कोयल पाखी  कूजा  है।


मंदिर में की जाती  प्रतिदिन,

कहते  उसको  सब पूजा  है।


रंग -  बिरंगी   आई     होली,

बना  रही    मैया   गूजा   है।


राम जिन्हें  लाए   कह  दारा,

नैपाली    सीता      भूजा है।


मुर्गी  के   बच्चे   को   कहते ,

'शुभम' लोग   सारे  चूजा  है।


🪴 शुभमस्तु !


२८.०२.२०२१◆ ३.१५ पतनम मार्तण्डस्य।

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