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✍️ शब्दकार©
🍕 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कहाँ गई मीठी गुड़धानी।
याद किया आया मूँ पानी।।
मूँगफली की चाप निराली।
लेमन जूस गोलियाँ खा ली।।
चूस - चूस चुभलाती नानी।
कहाँ गई मीठी गुड़धानी।।
ठंडी घिसी बर्फ भी खाई।
बूँदें मधु' रस की टपकाई।।
बैठ नीम तरु छप्पर -छानी।
कहाँ गई मीठी गुड़धानी।।
आम चूसते मीठे टपका।
गिरा डाल से झट से लपका।।
नाम लिया भरता मूँ पानी।
कहाँ गई मीठी गुड़धानी।।
लडक़ी खेल रहीं गुटकंकर।
कंचे , नौगोटी भी डटकर।।
चली गईं वे बात पुरानी।
कहाँ गई मीठी गुड़धानी।।
गूलर पर चढ़ गूलर खाते।
गिल्ली- डंडे में रम जाते।।
'शुभम' खूब बढ़ गप्पें तानी।
कहाँ गई मीठी गुड़धानी।।
🪴 शुभमस्तु !
०२.०२.२०२१◆ १.००पतनम मार्त्तण्डस्य।
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