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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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जन्मांध होते हैं धृतराष्ट्र
उनके लिए क्या परिवार
क्या स्वराष्ट्र!
ताने रहते हैं
हाथों में अस्त्र -शस्त्र
बस विनाश ही है
उनका लक्ष्य मात्र।
अंधे का साथ निभाना,
बस आँखों पर पट्टी चढ़ाना!
अंधे को सशक्त बनाना,
नहीं सोचना ,न समझना, समझाना,
गंधारियों की भूमिका में
चले जाना,
क्या यही है
देशभक्ति का तानाबाना?
जन्मांध नहीं होती गांधारी,
विवेकहीन भी नहीं होती नारी!
कभी -कभी होती है उसकी
लाचारी,
जो पड़ जाती है घर- परिजन और पूरे देश पर भारी,
अंधभक्ति कभी सुफल नहीं देती,
जब देती है कुफल ही देती है!
विनाश ! विनाश !!और विनाश!!!
बस सोचने को शेष रह जाता है शब्द 'काश!'
जब टूटने लगती है
देश की मर्यादा की साँस,
शेष नहीं बचती कोई आश!
अंतर महाभारत
छिड़ा हुआ है !
किसे है सत्य की रक्षा की परवाह!
दिलों के बीच में खड़ी
कर दी गई हैं दीवारें!
धर्म की ,मज़हब की,
जाति की ,प्रजाति की,
कैसे होगा देश का उद्धार!
पर यहाँ किसको है दरकार?
चलता रहना चाहिए
बस अपना दरबार!
गांधारियों की 'धिकराष्ट्रता' ?
क्या कहिए !
'धूर्तराष्ट्रता' के फल चखते सहिए!
भविष्य दिखाई दे रहा है,
दशों दिशाओं में अँधेरा है 'शुभम',
आदमी ही देव है आदमी ही
एटम बम ।
🪴 शुभमस्तु !
२५.०२.२०२१◆८.४५पत नम मार्तण्डस्य।
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