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✍️ शब्दकार ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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[ 1 ]
मेरे भारत देश में, तरह - तरह के जीव।
मानव तन में भेड़ हैं,जौंक सर्प कुछ क्लीव।
जौंक सर्प कुछ क्लीव,गिद्ध जिंदा नर खाते।
आस्तीन के साँप, नहीं मानव को भाते।।
'शुभम' भेड़िए नोंच, रहे हैं डाले घेरे।
कैसे हो उद्धार, भक्त भारत के मेरे।।
[ 2 ]
मेरे भारत देश में, राजनीति का पंक।
छिटक रहा हर ओर ही,तनिक नहीं है शंक।।
तनिक नहीं है शंक, भक्त सब पट्टी बाँधे।
देते पर उपदेश, उठा अर्थी निज काँधे।।
'शुभम' न शेष विवेक,भेड़ बकरी के चेरे।
जातिवाद के कीट ,काटते तन - मन मेरे ।।
[ 3 ]
मेरे भारत देश के, नेता मिट्ठू राम।
अपने ही गुण गा रहे,कहते करो सलाम।।
कहते करो सलाम,भूल पिछलों को जाओ।
माखन की दरकार , हमारी देह लगाओ।।
'शुभम' यही शुभ काज,हमीं शुभचिंतक तेरे।
माखन के शौकीन, देश भारत के मेरे।।
[ 4 ]
मेरे भारत देश के ,चमचे गुण की खान।
खच्चर को घोड़ा कहें ,बढ़ा रहे हैं शान।।
बढ़ा रहे हैं शान, भेड़ की भीड़ बढ़ाते।
नेता ही भगवान,मानकर फूल चढ़ाते।।
'शुभम' न कर विश्वास, उखाड़ेंगे तव डेरे।
करते बंटाढार, देश के चमचे मेरे।।
[ 5 ]
मेरे भारत देश में , बाँबी बनी अनेक।
दीमक चाटे जा रही,पालित पोषित नेक।।
पालित पोषित नेक, दुलारी नेताजी की।
बना सुरंगी देश,पूड़ियाँ खाती घी की।।
'शुभम' खोखला राज,दोमुँहे करते फेरे ।
डसते हैं दिन -रात, देश भारत को मेरे।।
🪴 शुभमस्तु !
०९.०२.२०२१◆५.३०पतनम मार्त्तण्डस्य।
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