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✍️ शब्दकार ©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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आज देश की किसको चिंता।
जूझ रहा जो उसको चिंता।।
लोग देखते जेब तिजोरी,
सैनिक की हर रिस को चिंता।
भरे पेट वालों को क्या है?
बाँध पोटली खिसको , चिंता।
देशप्रेम के कोरे नारे,
क्या नारी क्या नर को चिंता।
राजनीति की कीचड़ से सन,
फैलाएँ वे विष को ,चिंता।
जीवन की राहें सब टेढ़ी,
कैसे पहुँचें घर को , चिंता।
'शुभम' देश थाली का बैंगन,
ससुरालय की सबको ,चिंता।
🪴 शुभमस्तु !
०६.०२.२०२१◆६.००पतनम मार्तण्डस्य।
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