बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

वासंती बहार [ मनहरण घनाक्षरी ]


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

                      -1-

आयौ ऋतुराज आज,शीश धरे पुष्पताज,

सजायौ है मही साज,फूली फुलवारी   है।

ओढ़ पीत चूनरिया, हरी - हरी घाँघरिया,

भई धरा बाबरिया,आभा  अति न्यारी है।।

सरसों  सिहाइ   रही,गेंदी महाकाय   मही,

     भृंग  कूँ लुभाय रही,नाचि रही क्यारी  है।

कूकि रही कोयलिया,चहकि जगी गौरैया, 

बाजी शुभ पायलिया, वासंती सु नारी है।।


                      -2-

शीत गयौ बीत मीत, आयौ मधुमास प्रीत,

गाइ   रही  पिक  गीत, ठूँठ हरियाने   हैं।

आम हू बौराइ गयौ,पीपरा ललाइ भयौ,

नीम मिठिआइ  गयौ,  वृक्ष बतियाने हैं।।

बेलें लिपटाय रहीं,मौन -मौन बातें कहीं,

वात  में सुगंध  बही, वस्त्र तँगियाने   हैं।

आगि-सी लगी'शुभम',पल कूँ न होय कम,

नाँहिं   मन  तुच्छ  भ्रम,  हम पतियाने हैं।।


                      -3-

छायौ ऋतुराज कंत, नाम है शुभ  वसंत,

माधुरी फ़बी  अंनत, वात में सुगन्ध   है।

नीर  भरी  नदी बहे, कलरवी बात    कहे,

मदमाती  मौन रहे,   प्रकृति -  प्रबंध  है।।

लाल  हरी  कलियाँ  हैं,राती रँगरलियाँ  हैं,

फूल क्यारी  गलियाँ हैं,काम मतिअन्ध  है।

'शुभम' वसंत जितै, लीक तजि  मन  मथै,

देखिअहु  जितै - तितै, हस्ती कौ  कंध   है।।


                     -4-

राधा कहि रही श्याम,आ जा बरसाने गाम,

कहूँ  कुंज में ललाम ,सँग   रंग      खेलेंगे।

आइ गयौ मधु मास, उठी फूलनु सुवास,

करें  गोपी  सँग  रास, घाम हम    झेलेंगे।।

होरी आई मनभाई,याद आयौ तू कन्हाई,

देह  छाई है  लुनाई, कहौ  कैसे    मेलेंगे।

दे तू  चूनरी भिगाइ,कान्हा गाम मेरे आय,

रही कोकिला बुलाय, पापड़ ना   बेलेंगे।।


                      -5-

श्याम लाय पिचकारी, रंग भरि मारि  धारी,

साड़ी, कंचुकी बिगारी,राधा कहे'मानि जा।

'नाँहिं  मानूँ  तेरी बात, ऋतु वासंती  सुहात,

देखौ चाँदनी है रात,मन मेरौ जानि जा।।

घोंटि राखी  मैंने भंग,  पीवै आवेगी  तरंग,

चढ़ि जावै तब रंग,आजु  होरी  ठानि जा।'

'मेरे कुल की हु कानि,'शुभं'इतनी तौ जानि,

कान्ह मानि मानि मानि, कहें वृषभानुजा।'


🪴 शुभमस्तु!


१७.०२.२०२१◆१.००पत्नम मार्त्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...