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✍️ शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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प्रिया-अधर से मधुरतर,नहीं जगत में द्रव्य।
सुधा,सुधा ही है यहाँ, अधर पान है भव्य।।
बिंबा-फल से श्रेष्ठ है, प्रिया-अधर मधु कांत।
आवृत करता दसन को,शोभित आनन प्रांत।
द्विज की संगति का नहीं,कोई पड़ा प्रभाव।
अधर रहे प्रिय लाल ही,देते हैं नव हाव।।
खोट रत्न में जब लगे,घट जाता है मोल।
दंत-घात जब से लगा,बढ़ी अधर की तोल।।
काम - रूप तंत्री रहा,बना अधर पर यंत्र।
प्रियतम-रद से लिखरहा,गोपनीय शुभ मंत्र।
प्रिया-अधर के सोम का, कर लेता जो पान।
वंचित जो इस सोम से,कर न सके अनुमान।
प्रिया-अधर को देखकर,रखा गया यह नाम।
बिंबा फ़ल कहते जिसे,लाल अधर का काम।
आभा नवल प्रवाल-सी,बढ़ा रही है प्यास।
देख प्रिया के अधर को,मन मरु हुआ उदास।
एक अधर है देह में,अतिशय जिसका मान।
प्रिय-तन में विद्युत बहा, करता अनुसंधान।।
अधर-परस से चंचला,तन में कौंधे मीत।
चिंगारी यह नेह की,जगा रही उर प्रीत।।
अधर-सुरस जिसने चखा,वही सुभागी धन्य।
मधु-अमृत होता'शुभम',शेष न उपमा अन्य।
🪴 शुभमस्तु!
२७.०२.२०२१◆१०.००आरोहणम मार्तण्डस्य।
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