मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

ग़ज़ल


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

मेढकी    को   टाँग  में एक नाल   चाहिए।

देखकर    घोड़े   को   बेमिसाल    चाहिए।।


तारीफ़  में  अपनी बनाए पुल बहुत    सारे,

कूदकर  सौ  वर्ष   का   झट उछाल  चाहिए।


देखा  नहीं   भूगोल   अपना जल,हवा कैसी,

कागा   को  हंस  वाली  वही चाल   चाहिए।


निकले   हैं   ये   शिवा  बनने को   केहरी,

उनको  तो  बस शेर की इक खाल  चाहिए।


करना नहीं उनको  पड़े मन देह से श्रम भी,

हीरों  भरा  सोने  का  मोटा थाल   चाहिए।


देख पर-सौभाग्य  उनका जल उठा तन मन,

पर  हिमालय -सा  तना ऊँचा भाल चाहिए।


जानता  जो महक अपने स्वेद की  'शुभम',

और की मेहनत का न उनको बाल चाहिए।


🪴शभमस्तु !


२३.०२.२०२१◆६.००पतनम मार्तण्डस्य

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...