बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

ये कैसी देश - रचना! [ गीत ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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नेताओं    को    तेल  लगाना ,

हमको    नहीं  कभी   आता।

सुनो!सुनो!! घड़ियाली आँसू,

नहीं    बहाना भी      भाता।।


पैर     चाटते    नेताओं    के ,

शीश  झुकाते    ड्यौढ़ी  पर।

चमचे    खड़े   आरती करते ,

शरणागत   हो    पौड़ी   तर।।

स्वाभिमान की   रक्षा  करते,

उन्हें   न    भाए     ये  छाता।

नेताओं  को    तेल   लगाना ,

हमको नहीं    कभी   आता।।


पलक  पाँवड़े  बिछा स्वयं के,

कहें     'पधारें        नेताजी।'

रिरियाते   घिघियाते  कंपित,

पढ़े-लिखे    कंपित   प्राजी।।

पानी सूख  गया  आँखों का,

जीना   नहीं     उन्हें  आता।

नेताओं   को    तेल लगाना,

हमको  नहीं   कभी आता।।


वेश्या  के    पाँवों  में   जिनका,

 चरित   लोटता   फिरता   है।

वही - वही भाषण -  चिंघाड़ू,

परदे   में    नित  गिरता   है।।

रिश्वत दम्भ  दलाली   से ही,

परिवार  छद्म  से पल पाता।

नेताओं   को   तेल  लगाना,

हमको   नहीं   कभी आता।।


दीन -हीन   आ जाता  कोई,

फँस   जाता    उनका  मुर्गा।

मीठी -  मीठी   बातें   करके,

ले  जाता     उसको    गुर्गा।

कोई  मरे ,  बचे   या   जीवे,

वह हलाल   कर  जी जाता।

नेताओं   को   तेल  लगाना,

हमको  नहीं  कभी  आता।।


नेता  की    कुर्सी  से जिनकी,

चलती     है     रोजी -   रोटी।

पाँव छुएँ पहले झुक-झुककर,

पकड़ उखाड़ें   सिर - चोटी।।

बोटी -  बोटी   खाएँ    कच्ची,

मानवता    से    क्या   नाता ?

नेताओं  को   तेल     लगाना,

हमको   नहीं   कभी  आता।।


डूबा  है   आकंठ    कीच   में,

फ़िर भी कमल खिला करता।

पहन  बगबगे   वेश  देह   पर,

बगुला - भक्त   तना फिरता।।

कितना भी हो पतित कर्म से,

फिर भी गीत    मधुर  गाता।

नेताओं   को   तेल   लगाना,

हमको   नहीं   कभी  आता।।


पढ़ा -लिखा   ऊँची शिक्षा का,

 शीश,  झुका  पद   को  छूता।

नेताजी  का   हुआ   आगमन,

उठा  रहा     बढ़कर     जूता।।

'शुभम'कलुषतामय भारत की,

रचना   समझ    नहीं    पाता।

नेताओं    को    तेल  लगाना ,

हमको   नहीं   कभी  आता।।


🪴

 शुभमस्तु !


०३.०२.२०२१◆१.००पतनम मार्त्तण्डस्य।

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