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✍️ शब्दकार ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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नेताओं को तेल लगाना ,
हमको नहीं कभी आता।
सुनो!सुनो!! घड़ियाली आँसू,
नहीं बहाना भी भाता।।
पैर चाटते नेताओं के ,
शीश झुकाते ड्यौढ़ी पर।
चमचे खड़े आरती करते ,
शरणागत हो पौड़ी तर।।
स्वाभिमान की रक्षा करते,
उन्हें न भाए ये छाता।
नेताओं को तेल लगाना ,
हमको नहीं कभी आता।।
पलक पाँवड़े बिछा स्वयं के,
कहें 'पधारें नेताजी।'
रिरियाते घिघियाते कंपित,
पढ़े-लिखे कंपित प्राजी।।
पानी सूख गया आँखों का,
जीना नहीं उन्हें आता।
नेताओं को तेल लगाना,
हमको नहीं कभी आता।।
वेश्या के पाँवों में जिनका,
चरित लोटता फिरता है।
वही - वही भाषण - चिंघाड़ू,
परदे में नित गिरता है।।
रिश्वत दम्भ दलाली से ही,
परिवार छद्म से पल पाता।
नेताओं को तेल लगाना,
हमको नहीं कभी आता।।
दीन -हीन आ जाता कोई,
फँस जाता उनका मुर्गा।
मीठी - मीठी बातें करके,
ले जाता उसको गुर्गा।
कोई मरे , बचे या जीवे,
वह हलाल कर जी जाता।
नेताओं को तेल लगाना,
हमको नहीं कभी आता।।
नेता की कुर्सी से जिनकी,
चलती है रोजी - रोटी।
पाँव छुएँ पहले झुक-झुककर,
पकड़ उखाड़ें सिर - चोटी।।
बोटी - बोटी खाएँ कच्ची,
मानवता से क्या नाता ?
नेताओं को तेल लगाना,
हमको नहीं कभी आता।।
डूबा है आकंठ कीच में,
फ़िर भी कमल खिला करता।
पहन बगबगे वेश देह पर,
बगुला - भक्त तना फिरता।।
कितना भी हो पतित कर्म से,
फिर भी गीत मधुर गाता।
नेताओं को तेल लगाना,
हमको नहीं कभी आता।।
पढ़ा -लिखा ऊँची शिक्षा का,
शीश, झुका पद को छूता।
नेताजी का हुआ आगमन,
उठा रहा बढ़कर जूता।।
'शुभम'कलुषतामय भारत की,
रचना समझ नहीं पाता।
नेताओं को तेल लगाना ,
हमको नहीं कभी आता।।
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शुभमस्तु !
०३.०२.२०२१◆१.००पतनम मार्त्तण्डस्य।
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