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✍️ शब्दकार ©
💃🏻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
पायल पैरों में बजे, कानों में गुंजार।
मुड़-मुड़आँखें देखतीं,किधर रम्य ध्वनिकार।
किधर रम्य ध्वनिकार,हृदय के द्वार खोलती।
गूँज रहा संगीत, काम- रस अंग घोलती।।
'शुभम' बहुत बेचैन,हुआ मन मेरा घायल।
अँगना के देहांग, थिरकते जैसे पायल।।
-2-
पायल गाती प्रेम के,गीत मनोरम मीत।
कहती मुझसे कौन नर, पाएगा अब जीत।।
पाएगा अब जीत, बाँध लूँगी मैं स्वर से।
मैं धरती से दूर, जुड़ी हूँ तेरे उर से।।
'शुभं'तपस्वी साधु,सभी मुझ पर हैं मायल।
करते विनत प्रणाम,कह रही रूपा-पायल।।
-3-
पायल हृदय-प्रवेश की,एक युक्ति प्राचीन।
पहने कामिनि पाँव में,भरती भाव नवीन।
भरती भाव नवीन,हृदय नर का भटकाती।
बजता मधु संगीत,खींच नारी तर लाती।।
'शुभं' पुरुष बलवान,हो रहे नित प्रति घायल।
करती जग चमकार,नारि की बजती पायल।
-4-
पायल तेरे पाँव की,बजे सदा अविराम।
गूँजें नित संगीत मधु,सुनूँ सुबह से शाम।।
सुनूँ सुबह से शाम,हृदय दो- दो जुड़ जाते।
तन - मन होते एक,प्रेम के बीज उगाते।।
'शुभम' प्रिये! मत रूठ,हृदय मेरा है मायल।
अलिंगन में बाँध, बंद मत करना पायल।।
-5-
पायल की आहट सुनी, हुआ हृदय मदहोश।
रग-रग में खुलने लगे,बंद पड़े जो कोश।।
बंद पड़े जो कोश, चेतना जागी भारी।
जाग उठा उर -काम,आ रही कामिनि नारी।।
'शुभम' देखते झाँक,हुए दर्शक नर घायल।
छुन-छुन का संगीत,बजा नारी- पद पायल।।
मायल =आसक्त।
रूपा=चाँदी।
युक्ति= डिवाइस।
🪴 शुभमस्तु !
१८.११.२०२१◆२.३०
पतनम मार्तण्डस्य।
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