गुरुवार, 25 नवंबर 2021

ये शोर क्यों है बरपा! 🦜 [ अतुकांतिका ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🦜 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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क्यों परिंदे 

चिचियाने लगे हैं,

कानफोड़ू शोर 

मचाने लगे हैं,  

रँभाने लगीं हैं गाय गोरू

बकरियाँ मिमियाती हैं,

दुहवाती हुईं भैंसें

क्यों बिदक जाती हैं!


खिलंदड़ गोरियाँ ,

गाँव की छोरियाँ,

अब कुलाँचें नहीं भरतीं,

डेढ़ हाथ के घूँघट वालियाँ

नव यौवनाएँ 

रहतीं हैं छिपती - लुकती,

न जाने क्यों

गाँव के सीधे - सादे छोकरे

इठलाने - से लगे हैं,

पड़ौसिनों भौजाइयों को

ताकने लगे हैं,

बालों में तेल,

चश्मे आँखों पर 

चढ़ाने लगे हैं।


चौकन्ना-चौकन्ना-सा है

हर प्रौढ़ - प्रौढ़ा,

व्याकुल हिरनी - सी है

हर घर की अनूढ़ा,

सावधान करने में लगे हैं

बुढ़िया - बूढ़ा,

कहाँ से आ गया

नए जमाने का

हमारे गाँव में कूड़ा।


भूल गए हैं बालक

गुल्ली डंडा ,

काँच की गोलियों से

पूस माघ की धूप में

गुच्ची पाड़ा,

बालिकाएँ नहीं खेलतीं

गुट कंकड़,

झाँझी या फूल तरैया ,

क्योंकि हाथ -हाथ में

 है  जादू की डिबिया।


सुना ही नहीं 

देखा भी है  सबने,

आए हैं कुछ लोग

शहर से दिखलाते हुए

नए - नए सपने,

गाँव की हवा ही इसलिए

हर रोज  बदल रही है,

पछुआ  की पवन 

अब गरमाने ,रिझाने ,

 फुसलाने,तपाने लगी है,

उससे भी अधिक

हमें  'शुभम'  सताने लगी है!


🪴 शुभमस्तु !


२५.११.२०२१◆३.३० 

पतनम मार्तण्डस्य।

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